बिखरे देह के साथ माँ की
गोद में जुड़ रही थी मैं
जब बहार निकली तो नन्ही सी
आँखें थी, और आवाज़ की कोई पहचान नहीं थी,
मैं बस रोती थी, और माँ
मुझे गोद में झटके से लेती थी
मैं बस खाती थी सोती थी,
माँ की गोद में प्यार से पलती थी
तब बस इतना ही जानती थी,
मैं तो दुनिया में बस अभी आई थी
और माँ मुझे ऊँगली पकड़कर
चलना सीखाती थी
मैं तो उँगलियाँ भी नही
पहचानती थी..
थोड़ी बड़ी होने लगी मैं, अब
चलने लगी मैं
अब हसने लगी मैं, अब खेलने
लगी मैं
अब पढने भी लगी मैं, अब
दुनिया से जुड़ने लगी मैं..
ये दुनिया पसंद करने लगी
मैं, और करीब होने लगी मैं
कुछ कुछ सोचने लगी मैं, इस
दुनिया से प्यार करने लगी मैं
मैं आईने में देखने लगी,
हल्का श्रृंगार करने लगी
मुझे ये सब एक सुहानी कहानी
लगने लगी
मैं इसी में खोने लगी..
कामयाबी की तरफ मैं बड़ने
लगी,
मेरी रातों की नींद जाने
लगी
सोचती थी सब कुछ पता है
मुझे
पर कुछ था जो नहीं जानती
थी.
कुछ ऐसा हुआ एक ज़िन्दगी के
पन्ने में
जिसने कभी सोने नही दिया
हसीं सपनों में
सब कह सकती थी मैं दुनिया
में
पर जब पहचान मिली आवाज़ को
मेरी
मैंने गवाई वो आवाज़ उन
चीखों में
मेरे दर्द को क्या बाटूँ,
मैं इस दुनिया से
मैंने खुदको ही गवा दिया
इसकी मोहोब्बत में
मैं लडती रही, मैं चीखती
रही
जो खोया था, मैं चीखती रही
उसे पाने में..
मैं दर्द से लिपटी चादर में
उदास रहती थी
मैं खुश रहती थी पहले, अब
बस रोती थी
अब कांपती थी, और खुदसे
कहती थी
अब डरती हूँ इस दुनिया में
वापस आने में...
सुरभि सप्रू (तमन्ना)